

खोजी रिपोर्ट का संपादन
हर अच्छी स्टोरी को एक संपादक की जरूरत है। किसी अच्छी खोजी खबर के लिए खास तौर पर ज़्यादा लागू होता है। किसी पत्रकार के लिए अपनी कहानी से प्यार करना और उसके कारण जरूरी चीज़ों की अनदेखी कर देना आसान होता है। लेकिन एक अच्छा संपादक अपना काम को वस्तुनिष्ठ तरीके से करेगा। वह इसकी भरपाई कर देगा। संपादक किसी रिपोर्ट को ठोस आकार देने में मदद करता है ताकि पाठक आसानी से समझ सकें और वह जांच बिल्कुल खरी साबित हो।
अक्सर हर किसी खोजी परियोजना की रिपोर्ट के संपादन के लिए एक समर्पित संपादक का उपलब्ध होना संभव नहीं होता। छोटे समाचार संगठन बेहद कम पत्रकारों के जरिए काम चलाते हैं। ऐसे मामलों में एक रिपोर्टर अपने अन्य सहयोगियों की रिपोर्ट संपादित कर सकता है। इस तरह एक-दूसरे की रिपोर्ट का संपादन करके सीमित संसाधन में काम होता है। कुछ मामलों में समाचार संगठन के बाहर के किसी व्यक्ति से संपादन कराया जाता है। तरीका जो भी हो, आपको रचनात्मक तरीके संपादन की जरूरत है। इसलिए साधन संपन्न बनें। अपनी रिपोर्ट के लिए एक अच्छा संपादक खोजें। इससे आपकी कहानी मजबूत होगी।
योजना, योजना, योजना
खोजी कहानी को संपादित करना एक विशेष दायित्व है। सामान्य खबरों के संपादन में व्याकरण संबंधी त्रुटियों को ठीक करना, खबर में स्पष्टता जाना या अतिरिक्त तथ्य-जांच करना जैसे काम शामिल होते हैं। लेकिन खोजी खबरों के संपादन में इससे कहीं अधिक काम करने की जरूरत है। इसमें संपादक से कहानी को दूसरे स्तर पर ले जाने की अपेक्षा होता है। इसमें यह सुनिश्चित करना है कि सटीकता बनाए रखकर कानूनी और नैतिक सीमाओं का उल्लंघन किए बिना कहानी आकर्षक बनी रहे। पाठकों को न केवल कहानी का तात्पर्य समझाने है, बल्कि उन्हें इससे जोड़ने की भी जरूरत है। संपादक को यह सुनिश्चित करना होगा कि पाठक उस कहानी के मूल्य को समझें। अपने लिए उस कहानी की प्रासंगिकता को पहचानें और उसकी सराहना करें।
हम ऐसा संपादन कैसे करते हैं? बढ़िया संपादन अच्छी सामग्री पर निर्भर करता है। इसके लिए एक अच्छी योजना जरूरी है। रिपोर्टिंग चरण में ही एक अच्छी रूपरेखा और स्पष्ट फोकस की जरूरत है। इसके बिना कहानी ख़राब निष्कर्षों तक पहुंच सकती है। वह असंगत संरचना और विभिन्न छिद्रों के साथ बर्बाद हो सकती है।
इसलिए योजना बनाना ही सफलता की कुंजी है। रिपोर्टिंग और लेखन प्रक्रिया के हर चरण की सावधानीपूर्वक योजना बनाकर कुछ उन कमियों से बच सकते हैं, जो कहानी को कमजोर करे। जटिल खोजी कहानियों के लिए यह विशेष रूप से सच है, जिनमें महीनों तक रिपोर्टिंग की जाती है। सावधानीपूर्वक योजना बनाकर आप काफी समय बचा सकते हैं। इससे आपकी परेशानी भी कम होगी। खासकर संपादन चरण तक पहुंचने पर काम काफी सहज होगा।
इसलिए, याद रखें कि संपादक का काम कहानी ख़त्म होने के बाद शुरू नहीं होता। उनका काम भी योजना चरण की शुरुआत में ही शुरू होता है। आप सबसे पहले पिच के आधार पर सवाल उठाकर अपना काम शुरू कर सकते हैं। रिपोर्टर से सवाल करना संपादक की ज़िम्मेदारी है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि पिच बरकरार रहे। ऐसा होने पर एक प्रभावशाली और सम्मोहक खोजी कहानी बन सकेगी।
चरण एक : कहानी को परिभाषित करें
एक अच्छी पिच एक पेज से अधिक नहीं होनी चाहिए। मीडिया संस्थान और इसकी संस्कृति के आधार पर उस पिच को पांच मिनट के भीतर मौखिक रूप से समझाना संभव हो। पिच में प्रस्तावित कहानी के मुख्य आधार, पृष्ठभूमि या संदर्भ तथा प्रारंभिक निष्कर्षों पर केंद्रित करना चाहिए। उस मुख्य प्रश्न पर प्रकाश डालना चाहिए, जिसका उत्तर यह प्रस्तावित कहानी देना चाहती है।
पहली बार रिपोर्टर से कहानी का विचार सुनने के दौरान ही आपके दिमाग में कहानी की तस्वीर बननी चाहिए। कई बार पत्रकार तथ्यों और आंकड़ों पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करते हैं। यह बताना भूल जाते हैं कि कहानी वास्तव में किस बारे में है। इसे याद दिलाकर स्पष्टता लाना संपादक की जिम्मेदारी है।
चरण दो : फोकस तय करें
हरेक खोजी कहानी के कई पहलू होते हैं। एक रिपोर्टर आसानी से सूचनाओं के चक्रव्यूह में खो सकता है। लेकिन यह संपादक का काम है कि रिपोर्टर को महत्वपूर्ण प्रश्न उठाने में मदद करे, जिसका उस खोजी प्रोजेक्ट में उत्तर देना है। वह प्रश्न कहानी का कोण होगा, जो कहानी की रूपरेखा में अन्य प्रासंगिक बिंदुओं को आधार देगा। एक बार जब आप रूपरेखा से सहमत हो जाएं, तो रिपोर्टर को जानकारी एकत्र करना शुरू कर दे।
चरण तीन : निष्कर्षों को व्यवस्थित करें
अपने रिपोर्टर को मैदान में निहत्था न जाने दें। गारंटी करें कि रिपोर्टर ने किसी से मिलने के पहले समुचित शोध कर लिया है। खासकर स्रोतों की पृष्ठभूमि पर। रिपोर्टर से इस पर भी बात करें प्रारंभिक टारगेट कौन लोग होंगे? किन पर बाद में केंद्रित करना है?
प्रारंभिक स्रोत आमतौर पर कहानी की पृष्ठभूमि प्रदान करता है। वह बताता है कि चीजें कैसे काम करती हैं। उससे नियम, संगठन की संरचना आदि का पता चलता है। आपका स्रोत एक तरह से एक विशेषज्ञ है, भले ही वह जांच के उस मुद्दे में शामिल न हो। बाद में आप जिन स्रोतों से संपर्क करते हैं, वे गवाह हैं। यह ऐसे लोग हैं जो जानते हैं कि क्या हुआ। लेकिन वे अपराधी नहीं। इसके बाद आप अंतिम स्रोत तक पहुंचते हैं। उनसे आपको कहानी के मुख्य तत्व, साक्ष्य और अपराधियों के नाम भी मिल सकते हैं।
सूचना एकत्र करने के दौरान संवाददाता अपनी रिपोर्टिंग का दस्तावेजीकरण किस तरह करे? इस पर प्रारंभ में ही सहमति बनाकर संपादक एक बड़ी मदद कर सकते हैं। इसके लिए कई उपकरण हैं। लेकिन मुख्यतः इस पर सहमत होना है कि तथ्यों और डाटा को कैसे व्यवस्थित किया जाएगा? इस तक किसकी पहुंच होगी? जैसे, गूगल या एमएस डॉक को एक जीवंत दस्तावेज़ के रूप में उपयोग किया जा सकता है। जैसे-जैसे रिपोर्टिंग आगे बढ़ती है, रूपरेखा के विभिन्न हिस्सों में लगातार डाटा, लिंक और फ़ाइलें जोड़ती रहती है।
सभी बैकअप दस्तावेजों को व्यवस्थित करना भी जरूरी है। एक संपादक के रूप में यह आपकी ज़िम्मेदारी का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
चरण चार : नियमित जांच करें
बड़ी जांच परियोजना में कई महीने लग सकते हैं। रिपोर्टर के लिए इस दौरान फोकस खोना या कहानी पूरी करने की प्रेरणा खत्म होना आसान है। लेकिन एक संपादक के रूप में आपका काम इस पर नजर रखना है। रिपोर्टर को हमेशा याद दिलाएं कि हम यह प्रोजेक्ट क्यों कर रहे हैं? इसमें क्या जोखिम हैं और कहानी प्रकाशित होने पर क्या प्रभाव हो सकता है? अपने पत्रकारों को प्रेरित करें। हमेशा उन्हें अतिरिक्त प्रयास करने के लिए प्रोत्साहित करें। कई बार एक अतिरिक्त स्रोत के अभाव में कहानी की विश्वसनीयता कम हो जाती है।
ध्यान रखें कि जब स्टोरी में काफी गतिरोध हो, और उस पर आगे काम जारी रखना उचित न दिखे, तो उसे रोकना भी आपका ही दायित्व है। एक संपादक के रूप में आप अपने संस्थान के संसाधनों की सीमा को जानते हैं। इसीलिए रिपोर्टर के साथ नियमित समीक्षा आवश्यक है, ताकि आप उस बिंदु को पहचान सकें जहां प्रयास समाप्त हो चुके हैं। अब कहानी पर काम करने के लिए पर्याप्त समय नहीं है। कई बार यह तात्कालिक मामला होता है। भविष्य में दुबारा उस कहानी पर काम शुरू कर सकते हैं।
चरण पांच : लेख को परिष्कृत करके आकार देना
जब संपादक किसी कहानी को संपादित करने के लिए बैठता है, तो इसका मतलब है कि रिपोर्टिंग टीम का काम पूरा हो चुका है। संभवतः रिपोर्टिंग योजना सफल रही है। रिपोर्टर ने सभी प्रासंगिक स्रोतों से मुलाकात की है। जरूरी साक्षात्कार कर लिया है। आवश्यक दस्तावेज मिल गए हैं। इस समय तक रिपोर्टर को उस विषय में पूरी तरह से पारंगत हो जाना चाहिए। वह प्रारंभिक आधार का समर्थन करने के लिए साक्ष्य प्रदान करने में सक्षम हो।
इस समय तक संपादक के पास फ़ोल्डरों में कई फ़ाइलें आ चुकी होंगी। इनमें साक्षात्कार और प्रतिलेखों की रिकॉर्डिंग, पत्रों की पीडीएफ, बैठकों का विवरण, ईमेल और अन्य सभी प्रासंगिक दस्तावेज़ शामिल हैं। संपादक ने जांच प्रक्रिया की शुरुआत में रिपोर्टिंग टीम द्वारा बनाई गई कहानी की रूपरेखा की जांच की है। सभी प्रारंभिक धारणाओं को प्रमाणित भी कर लिया है। अब तक संपादक के पास सभी पक्षों के उद्धरणों द्वारा समर्थित तथ्य और दावे भी होने चाहिए। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि टीम ने जांच के टारगेट लोगों से बात करके उनका पक्ष लिया है। इस स्तर पर पहला मसौदा लिखा गया है। अब इसका संपादन करने का समय है।
जब आप महीनों लंबी खोजी कहानी का संपादन करते हैं, तो यह कोई सरल कहानी नहीं होती। इसमें कई जटिल मुद्दे शामिल होते हैं। उनमें कई स्रोतों से तथ्यों और खुलासे की परतें होती हैं। एक संपादक के रूप में आपको यह सुनिश्चित करना है कि पाठक उस लेख के निष्कर्षों, संदर्भ को समझ सकें। साथ ही, पाठक यह भी जान सके कि आपके रिपोर्टर ने निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए कौन-सी प्रक्रिया अपनाई। यदि आप ऐसा करने में विफल रहे, तो कहानी वह प्रभाव नहीं डाल पाएगी जिसकी वह हकदार है।
एक बार सारी सामग्री तैयार होने के बाद रिपोर्टर पहला ड्राफ्ट जमा करता है। इसके बाद संपादक द्वारा लेख को आकार देने और परिष्कृत करने का समय आ जाता है। आप शुरू से ही रिपोर्टिंग प्रक्रिया में शामिल रहे हैं। इसलिए कहानी को समझना आपके लिए मुश्किल नहीं होना चाहिए।
सबसे पहले लीड और ओपनिंग पैराग्राफ़ को मजबूत होना चाहिए ताकि वे पाठकों का ध्यान खींच सकें। पाठक उन्हें पढ़ना जारी रखने के लिए मजबूर हो। साथ ही जटिल निष्कर्षों को सरल बनाएं ताकि पाठक आसानी से समझ सकें। पाठकों के लिए कहानी की प्रासंगिकता और महत्व पर ज़ोर देकर आप बेहतर परिणाम हासिल कर सकते हैं।
दूसरे, आप मजबूत और दिलचस्प पात्रों के जरिए एक कथा प्रवाह बनाना चाहते हैं। आपको कथात्मक तरीके से खबर में शामिल लोगों का दिलचस्प वर्णन करने के तरीके खोजने होंगे।
अंत में, आप रिपोर्टर, मीडिया संस्थान और कहानी की सुरक्षा के लिए इसे संतुलित और नैतिक रखना सुनिश्चित करेंगे। आपको यह देखना है कि लेख में कोई विरोधाभास न हो। हर बात के दस्तावेज़ हैं और उनकी पुष्टि करना संभव है। इसके लिए रिपोर्टर को हर उस वाक्य के लिए एक लिंक डालना चाहिए, जिसके लिए अतिरिक्त समर्थन या साक्ष्य की आवश्यकता है। लिंक किसी अन्य दस्तावेज़, या प्रकाशित रिपोर्ट, या समाचार लेख का संदर्भ दे सकता है।
कुछ संपादक प्रत्येक वाक्य के बीच एक स्थान जोड़कर लेखों को तोड़ते हैं। फिर बैकअप सामग्री के साथ प्रत्येक वाक्य की बारीकी से जांच करके उस पर टिप्पणी करते हैं।
सुझाव और उपकरण
तथ्य-जांच
यदि संस्थान के पास कोई तथ्य-जांचकर्ता नहीं है, तो संपादक फैक्ट-चेक भी करता है। वह प्रत्येक तथ्य, आंकड़े और कथन का सत्यापन करता है। प्रत्येक दस्तावेज़, साक्षात्कार और सार्वजनिक रिकॉर्डों सहित अनेक स्रोतों से क्रॉस-चेक करना जरूरी है। इसके लिए लेक्सिस-नेक्सिस, पिपल और फैक्टिवा जैसे डेटाबेस और सत्यापन टूल का उपयोग करें।
(इस गाइड का तथ्य-जांच अध्याय भी देखें।)
LexisNexis: सार्वजनिक रिकॉर्ड, कानूनी जानकारी और न्यूज आर्टिकल्स का एक व्यापक डेटाबेस।
Pipl : लोगों की जानकारी खोजने के लिए एक गहन वेब खोज इंजन।
Factiva : व्यापक शोध के लिए एक वैश्विक समाचार डेटाबेस।
कथा-प्रवाह बनाए रखें
सुनिश्चित करें कि कहानी की शुरुआत, मध्य और अंत स्पष्ट हो। पाठकों को जोड़े रखने के लिए कथात्मक स्टोरी कहने की तकनीक का उपयोग करें। जैसे- तनाव पैदा करना, ज्वलंत दृश्य बनाना और पात्रों का विकास करना।
Scrivener : लंबे फ़ॉर्म वाली सामग्री के लिए डिज़ाइन किया गया एक लेखन सॉफ़्टवेयर। यह जटिल कहानियों को व्यवस्थित और संरचित करने में मदद करता है।
Evernote : नोट लेने वाला ऐप। यह अनुसंधान, साक्षात्कार और विचारों पर नज़र रखने में मदद करता है।
नतीजों का विश्लेषण
पाठकों को स्टोरी के निष्कर्ष का महत्व समझने में मदद करें। इसके लिए उन्हें संदर्भ प्रदान करें। इसमें पृष्ठभूमि की जानकारी, ऐतिहासिक संदर्भ और तकनीकी शब्दों या अवधारणाओं के स्पष्टीकरण शामिल हों।
Google Scholar : इसमें शैक्षणिक लेख और शोध पत्र शामिल हैं, जो पृष्ठभूमि की जानकारी और संदर्भ प्रदान करते हैं।
MuckRock : सार्वजनिक रिकॉर्ड के लिए अनुरोध करने और उसे ट्रैक करने का मंच।
निष्पक्षता और संतुलन जरूरी
कहानी के सभी पक्षों को प्रस्तुत करें। पूर्वाग्रह से बचें। निष्पक्षता बनाए रखने का प्रयास करें। जांच के टारगेट को कहानी में लगे आरोपों का जवाब देने का अवसर दें। कहानी में लगाए गए आरोपों संबंधी सबूत इकट्ठा होने के बाद यह करना है। जिन पर कहानी में गलत काम के आरोप हैं, उनसे पुष्टि और टिप्पणी मांगने के लिए एक पत्र लिखें।
उन्हें कितने समय तक जवाब देने का मौका देना चाहिए? इस पर मीडिया संगठनों की अलग-अलग राय है। लेकिन आम सहमति चार दिनों से एक सप्ताह के बीच है। लेकिन आप उन्हें पूरी स्टोरी कभी न भेजें। केवल उन प्रश्नों की सूची भेजें, जिनका आप उनसे उत्तर चाहते हैं।
कानूनी और नैतिक मामले
उस स्टोरी को प्रकाशित करने के कानूनी निहितार्थों से अवगत रहें। पत्रकारों और संस्थान की सुरक्षा के लिए मानहानि और गोपनीयता के उल्लंघन से बचने के लिए कानूनी विशेषज्ञों से परामर्श लें। सोसाइटी ऑफ प्रोफेशनल जर्नलिस्ट्स के नैतिक दिशानिर्देशों का पालन करें।
मुकदमों तथा कानूनी खतरों से बचने के जीआईजेएन की गाइड (A Journalist’s Guide to Avoiding Lawsuits and Other Legal Dangers) देखें।
डार्ट सेंटर फॉर जर्नलिज्म एंड ट्रॉमा (Dart Center for Journalism and Trauma) : यह पत्रकारों को प्रशिक्षण सामग्री, कानूनी संसाधन और सहायता प्रदान करता है।
कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स (Committee to Protect Journalists) : यह दुनिया भर में पत्रकारों की वकालत और कानूनी सुरक्षा के लिए सहायता करती है।
केस स्टडी
इसमें लगभग एक साल तक आपराधिक सिंडिकेट की जांच थी गई। यह गिरोह एशिया, अफ्रीका और चीन में पैंगोलिन की तस्करी करता था। पैंगोलिन को स्तनधारियों को स्केली एंटईटर के रूप में भी जाना जाता है। इस जांच में 15 देशों और क्षेत्रों के 40 से अधिक पत्रकारों ने साझेदारी रिपोर्ट की। उन्होंने शिकारियों, व्यापारियों और खरीदारों के साक्षात्कार किए। यहां तक कि इस पर्यावरणीय अपराध के दस्तावेजीकरण और सबूत इकट्ठा करने के लिए अंडरकवर भूमिका में गुप्त रूप से भी काम किया।

स्क्रीनशॉट : पैंगोलिन रिपोर्ट
संपादक शुरू से ही इस जांच में सक्रिय रूप से शामिल थे। वे रिपोर्टिंग योजना पर चर्चा करते थे। उसकी रूपरेखा पर सहमति बनाते थे। जब पत्रकारों को कहानी मिलने में कोई बाधा आती थी, तो सलाह और सुझाव देते थे। इस स्तर पर सहयोग की सफलता के लिए सावधानीपूर्वक योजना बनाना जरूरी है। संपादकों और प्रमुख पत्रकारों ने परियोजना की शुरुआत में हांगकांग में मुलाकात की। इसमें कहानी की रूपरेखा, कोण और रिपोर्टिंग योजना पर चर्चा की गई। एक बार सभी बिंदुओं पर सहमति के बाद प्रगति पर नज़र रखने और प्रारंभिक योजना विफल होने पर दूसरी योजना बनाने के लिए उनकी साप्ताहिक बैठक होती थी।
रिपोर्टिंग पूरी होने पर सभी पत्रकारों ने अपनी कहानी भेज दी। अब संपादक समूह को निष्कर्षों का आकलन करना और संपादन शुरू करना था। चूंकि रिपोर्टिंग कई स्थानों से आई थी, इसलिए संपादकों ने कहानी को अध्यायों में लिखने का निर्णय लिया। प्रत्येक अध्याय में तस्करों के नेटवर्क की आपूर्ति श्रृंखला के विभिन्न हिस्सों के बारे में बताया गया है। किस तरह पैंगोलिन को जंगल में पकड़ा गया, किस तरह अवैध रूप से संग्रहित किया गया, किस तरह चीन में तस्करी की गई, ऐसे हिस्सों पर काम हुआ। हालांकि, पूरे लेख को संपादित करने के लिए एक संपादक को अंतिम समीक्षक होने की आवश्यकता थी। जिन अध्यायों पर काम करने वाले विभिन्न संपादकों की राय अलग थी, उस पर अंतिम समीक्षक ने अंतिम निर्णय लिया।
निष्कर्ष
एक महीने की खोजी कहानी को संपादित करना एक महत्वपूर्ण कार्य है। बेहतर संपादन किसी खोजी लेख को और बेहतर कर सकता है। लेकिन संपादन की कमी से कोई रिपोर्ट बिगड़ सकती है। सावधानीपूर्वक तथ्य-जांच करना, कथा प्रवाह सुनिश्चित करना, संदर्भ प्रदान करना, निष्पक्षता और संतुलन बनाए रखना और काम के कानूनी और नैतिक निहितार्थों पर विचार करना इत्यादि प्रमुख दायित्व हैं। एक जटिल खोजी कहानी को संपादित करने के लिए शुरुआत से ही उचित योजना और तैयारी की आवश्यकता होती है। दूसरे शब्दों में, संपादकों का शुरू से ही शामिल होना जरूरी है।
संपादक इन जटिल कहानियों को परिष्कृत करते हैं, ताकि वह सम्मोहक, सटीक और प्रभावशाली हों। ऐसा करते हुए हम पत्रकारिता के उच्चतम मानकों को कायम रखते हैं। उम्मीद करते हैं कि हम अपने समाज पर सकारात्मक प्रभाव डालने में योगदान देंगे।
वाह्यु ध्यात्मिका, टेंपो डिजिटल कंपनी के सीईओ हैं। वह 2019-2021 में टेंपो मैगज़ीन, इंडोनेशिया के प्रधान संपादक थे। वर्ष 2015 में उन्होंने इंडोनेशिया में पनामा पेपर्स रिपोर्टिंग का नेतृत्व किया। यह इंटरनेशनल कंसोर्टियम ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स (आईसीआईजे) की साझेदारी सीमा-पार जांच परियोजना थी। वह ग्रीनपीस साउथईस्ट एशिया के बोर्ड सदस्य, एनवायर्नमेंटल रिपोर्टिंग कलेक्टिव (ईआरसी) के सलाहकार बोर्ड के सदस्य हैं। वह पुलित्जर सेंटर में साउथ ईस्ट एशिया रेनफॉरेस्ट जर्नलिज्म फंड की सलाहकार समिति के सदस्य भी हैं।
अनुवाद : डॉ. विष्णु राजगढ़िया